बुध ग्रह एक परिचय


बुध👉 ग्रह रजोगुणी, पृथ्वी तत्त्व प्रधान,क्षुद्र जाति, गोलाकृति, त्रिधातु प्रकृति, उत्तर दिशा का स्वामी, दूर्वा की भांति हरा रंग, चर प्रकृति, मिश्रित रस, धातु स्वर्ण तथा इसके अधिपति देवता भगवान् श्री विष्णु हैं।
ग्रह मंडल में बुध युवा राजकुमार का प्रतिक है।
बुध मिथुन एवं कन्या राशि का स्वामी है तथा यह कन्या राही के १५° अंश पर परमोच्च और मीन के १५° अंश पर परम नीच का माना जाता है।तथा कन्या राशि के १६° से २०° तक मूल त्रिकोणस्थ होता है।इसकी सूर्य-शुक्र के साथ मैत्री भाव , चंद्र के साथ शत्रु भावी, मंगल-गुरु-शनि के साथ समभाव रखता है।बुध एक राशि चक्र को लगभग १८ दिन में पूरा कर लेता है।

बुध बुद्धि-चातुर्य, वाक् शक्ति(वाणी), त्वचा, मित्र-सुख, विद्या, शिल्प, व्यवसाय, लेखन, गणित, कला आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
इसके अतिरिक्त बुध से ज्योतिष, निपुणता, चिकित्सा, क़ानून, व्यापर, बंधु सुख, अध्यापन, संपादन, चित्रकला, चाची, मामी, मौसी, भानजा, भानजी, आदि बंधु वर्ग,भगवान् विष्णु संबंधी धार्मिक कार्य,विवेक, बुद्धि, तर्क-वितर्क, प्रकाशन, अभिनय, वकालत आदि बौद्धिक कार्यो का विचार किया जाता है।

बुध चतुर्थ भाव का कारक है तथा यदि शुभ ग्रहो के साथ हो तो शुभ एवं पाप ग्रहों के साथ अशुभ माना जाता है।

कुंडली में बुध यदि अशुभ हो तो जातक को उदर (पेट संबंधी) रोग कुष्ठ आदि त्वचा रोग, मतिभ्रम, वाणी में दोष, सिर दर्द, वायु विकार, मंद बुद्धि, रक्त की कमी, निम्नरक्तचाप, आदि अशुभ फल मिलते है।

जनम कुंडली में  बुध अस्त,नीच या शत्रु राशि का ,छठे-आठवें-बारहवें भाव में स्थित हो,पाप ग्रहों से युत या दृष्ट,षड्बल विहीन हो तो उदर रोग,त्वचा विकार,विषम ज्वर,कंठ रोग, बहम,कर्ण एवम नासिका रोग, पांडू, संग्रहणी, मानसिक रोग,वाणी में दोष,इत्यादि रोगों से कष्ट हो सकता है।

बुध अपना शुभाशुभ फल ३२ से ३६ वर्ष कि आयु में एवम अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है कुमार अवस्था पर भी  इस का अधिकार कहा गया है।
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