श्री गणेश की जी काल्पनिक कुंडली

सर्वप्रथम पूजनीय व हर कार्य में प्रथम माने जाने वाले भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को मेष लग्न में हुआ। यह कुंडली कल्पना से बनाई गई है, जो गणेशजी के व्यक्तित्व पर आधारित है।

लग्न को सिर माना गया है। लग्न में केतु है, शनि की चतुर्थ भाव से लग्न पर नीच की दृष्टि आ रही है। यानी शनि की कुदृष्टि पड़ने से उनका सिर धड़ से अलग हुआ। केतु पृथकता का कारक भी है।

पौराणिक कथा के अनुसार माता का आदेश था कि किसी को भी स्नान करते वक्त नहीं आने दिया जाए। कर्क राशि, माता भाव में विराजमान है वहीं शनि भी है।


यह उन्हीं के पिता भगवान शिव ने किया। ऐसा कुंडली के अनुसार देखें तो मंगल की दृष्टि लग्न व केतु पर पड़ रही है। शनि, मंगल का दृष्टि संबंध भी बन रहा है। चतुर्थ यानी माता व दशम यानी पिता भाव में स्थित ग्रहों के कारण यह संयोग बना।

श्री गणेश माता-पिता के भक्त हैं। इसकी वजह सूर्य पर गुरु की कृपादृष्टि होना मान सकते हैं। उनका सिर हाथी का लगना भी मंगल व गुरु की ही कृपा रही। गुरु की पंचम व मंगल की चतुर्थ दृष्टि लग्न पर आने से ऐसा संपन्न हुआ।

सप्तम में राहु व उस भाव का स्वामी उच्च का होकर द्वादश में है अत: ऋद्धि व सिद्धि दो पत्नियों के स्वामी बने। उच्च का बुध, पराक्रमेश भी है, यही वजह है कि श्री गणेश का कोई शत्रु नहीं है।

  पंचम भाव में सूर्य व नवम भाव में गुरु व मंगल की अष्टम दृष्टि पड़ने से लाभ व शुभ इनके पुत्र हुए।

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