ज्योतिष और रोग

ज्योतिष शास्त्र भविष्य दर्शन की आध्यात्मिक विद्या है। भारतवर्ष में चिकित्साशास्त्र (आयुर्वेद) का ज्योतिष से बहुत गहरा संबंध है। होमियोपैथ की उत्पत्ति भी ज्योतिष शास्त्र  के आधार पर ही हुआ है I जन्मकुण्डली व्यक्ति के जन्म के समय ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रह नक्षत्रों का मानचित्र होती है, जिसका अध्ययन कर जन्म के समय ही यह बताया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को उसके जीवन में कौन-कौन से रोग होंगे। चिकित्सा शास्त्र व्यक्ति को रोग होने के पश्चात रोग के प्रकार का आभास देता है। आयुर्वेद शास्त्र में अनिष्ट ग्रहों का विचार कर रोग का उपचार विभिन्न रत्नों का उपयोग और रत्नों की भस्म का प्रयोग कर किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोगों की उत्पत्ति अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव से एवं पूर्वजन्म के अवांछित संचित कर्मो के प्रभाव से बताई गई है। अनिष्ट ग्रहों के निवारण के लिए पूजा, पाठ, मंत्र जप, यंत्र धारण, विभिन्न प्रकार के दान एवं रत्न धारण आदि साधन ज्योतिष शास्त्र में उल्लेखित है।
ग्रहों के अनिष्ट प्रभाव दूर करने के लिये रत्न धारण करने की बिल्कुल सार्थक है। इसके पीछे विज्ञान का रहस्य छिपा है और पूजा विधान भी विज्ञान सम्मत है। ध्वनि तरंगों का प्रभाव और उनका वैज्ञानिक उपयोग अब हमारे लिये रहस्यमय नहीं है। इस पर पर्याप्त शोध किया जा चुका है और किया जा रहा है। आज के भौतिक और औद्योगिक युग में तरह-तरह के रोगों का विकास हुआ है। रक्तचाप, डायबिटीज, कैंसर, ह्वदय रोग, एलर्जी, अस्थमा, माईग्रेन आदि औद्योगिक युग की देन है। इसके अतिरिक्त भी कई बीमारियां हैं, जिनकी न तो चिकित्सा शास्त्रियों को जानकारी है और न उनका उपचार ही सम्भव हो सका है। ज्योतिष शास्त्र में बारह राशियां और नवग्रह अपनी प्रकृति एवं गुणों के आधार पर व्यक्ति के अंगों और बीमारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
जन्मकुण्डली में छठा भाव बीमारी और अष्टम भाव मृत्यु और उसके कारणों पर प्रकाश डालते हैं। बीमारी पर उपचारार्थ व्यय भी करना होता है, उसका विचार जन्मकुण्डली के द्वादश भाव से किया जाता है। इन भावों में स्थित ग्रह और इन भावों पर दृष्टि डालने वाले ग्रह व्यक्ति को अपनी महादशा, अंतर्दशा और गोचर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं। अनुभव पर आधारित जन्मकुण्डली में स्थित ग्रहों से उत्पन्न होने वाले रोगों का उल्लेख कर रहा हूँ। इन बीमारियों का कुण्डली से अध्ययन करके पूर्वानुमान लगाकर अनुकूल रत्न धारण करने, ग्रहशांति कराने एवं मंत्र आदि का जाप करने से बचा जा सकता है। ग्रह स्थिति से निर्मित होने वाले रोग एवं रत्नों द्वारा उनका उपचार इस लेख में दर्शाये जा रहे हैं।
रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) – चिकित्सा विज्ञान में रक्तचाप होने के अनेकों कारण बताये गये हैं। चिंता, अधिक मोटापा, क्षमता से अधिक श्रम, डायबिटीज आदि। जन्मकुण्डली में शनि और मंगल की युति हों अथवा एक-दूसरे की परस्पर दृष्टि हो तथा छठे, आठवें और बारहवें भाव में चन्द्र का स्थित होकर पापग्रहों से दृष्ट होना रक्तचाप के योग देता है। चिंता और श्रम के कारण होने पर सफेद मोती, डायबिटीज और मोटापे के कारण होने पर पुखराज एवं शनि की साढ़े साती में रक्तचाप प्रारम्भ होने के कारण काला हकीक रत्न अंगूठी में धारण करने से लाभ होता है। उच्च रक्तचाप की स्थिति में बी.पी. स्टोन बायें हाथ की मध्य अंगुली में धारण करने से लाभ होता है। पूर्णमासी के दिन व्रत करें अैर बिना नमक का भोजन करने से भी बहुत लाभ होता है।

ह्रदय रोग – जन्मकुण्डली के चतुर्थ, पंचम और छठे भावों में पापग्रह स्थित हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि नहीं हो तो ह्वदय शूल की शिकायत होती है। कुम्भ राशि स्थित सूर्य पंचम भाव में और छठे भाव में अथवा इन भावों में केतु स्थित हो और चन्द्रमा पापग्रहों से देखा जाता हो तो ह्वदय संबंधी रोग होते हैं। सूर्य यदि कारण बनें तो माणिक, चन्द्र का कारण हो तो मोती और अन्य ग्रह कारक हों तो उनसे संबंधित रत्न धारण करना चाहिये।
मधुमेह (डायबिटीज) – यह रोग वंशानुगत, अधिक बैठने वाले व्यक्तियों को, चिंतन करने वाले व्यक्तियों को और अनियमित खानपान वाले व्यक्तियों को होता है। जन्मकुण्डली के अनुसार यह रोग चन्द्रमा के पापग्रहों के साथ युति होने पर, शुक्र ग्रह की गुरू के साथ या सूर्य के साथ युति होने पर अथवा शुक्र ग्रह पापग्रहों से प्रभावित होने पर होता है। बेज़ड (जौ-चने) की रोटी, करेले का उपयोग, विजयसार की लक़डी के प्रयोग, जामुन के प्रयोग, पैदल परिक्रमा, योगासन से इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है। सफेद मूंगे, एक्यूमेरिन रत्न अंगूठी में धारण करने से लाभ होता है।
पाईल्स (बबासीर) – सप्तम स्थान में स्थित मंगल लग्न में स्थित शनि से दृष्ट हो तो पाईल्स होती है। सप्तम भाव में धनु का मंगल स्थित हो तो भी पाईल्स की शिकायत होती है। इसके अतिरिक्त पंचम,सप्तम या अष्टम भाव में पापग्रह स्थित हों तो कब्ज और पाईल्स की शिकायत होती है। किडनी स्टोन, महामरियम, मूंगा, मोती आदि में से जो भी ग्रह जिम्मेदार हों, उसका रत्न धारण करने से लाभ होता है। माईग्रेन जन्मकुण्डली में शनि-चन्द्र की युति हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो तो माईग्रेन की शिकायत होती है। इसके अतिरिक्त द्वादश भाव में केतु शत्रु नवांश का स्थित हो अथवा पंचम स्थान में शत्रु राशि के ग्रह स्थित हों तो माईग्रेन की शिकायत होती है। अधिकतर इस रोग का प्रारम्भ शनि की साढ़े साती में होता है। “काला अकीक” रत्न दायें हाथ की ब़डी अंगुी में धारण करने से लाभ होता है।
अस्थमा (श्वांस रोग) – जन्मकुण्डली में बुध ग्रह मंगल के साथ स्थित हो या मंगल से दृष्ट हो, चन्द्रमा शनि के साथ बहुत कम दूरी पर स्थित हो अथवा अष्टम स्थान में वृश्चिक-मेष राशि का या नवांश का राहु स्थित हो तो व्यक्ति में एलर्जी के कारण अस्थमा की शिकायत होती है। ऎसी स्थिति में पन्ना रत्न, सफेद मूंगा अथवा गोमेद रत्न धारणण् करने से लाभ होता है।
स्त्री रोग – महिलाओं की जन्मकुण्डली में चन्द्रमा जब भी पापग्रहों के साथ अर्थात शनि, राहु, केतु एवं मंगल के साथ स्थित होगा तो मानसिक अशांति के साथ मासिक धर्म की अनियमितता पैदा करता है। ऎसी स्थिति में चन्द्रमा के साथ जो ग्रह स्थित हो उसका रत्न धारण करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। शनि-चन्द्र एक साथ हों तो काला हकीक दायें हाथ में धारण करने से लाभ होगा। अष्टम स्थान में मेष या वृश्चिक राशि का राहु स्थित हों और नवांश स्थिति भी उनकी अच्छी न हो तो रक्त स्त्राव अधिक होता है। गोमेद धारण करना ऎसी स्थिति में बहुत लाभकारी होगा।

दुर्घटना योग – अष्टम भाव में मंगल, राहु, केतु, शनि शत्रु राशि के स्थित हों और नवांश में भी उनकी स्थिति अच्छी नहीं हो और किसी शुभग्रहों की दृष्टि उन पर नहीं हो तो दुर्घटनाएं गम्भीर होती है। अत: अष्टम भाव स्थित पापग्रह से संबंधित रत्न धारण किया जावें तो अवश्य लाभ होता है।
अन्य रोगों में रत्न उपयोग – अष्टम भाव पीठ दर्द और कमर दर्द का कारण भी दर्शाता है। छठे भाव और अष्टम भाव में स्थित पापग्रह नेत्र की बीमारियां दर्शाता है। द्वितीय और द्वादश भाव में स्थित ग्रह भी अनेक प्रकार के रोगों का संकेत देते हैं। अत: सम्पूर्ण रूप से रोग का विचार करते समय जन्मकुण्डली में छठे, आठवें एवं द्वादश भाव के साथ-साथ द्वितीय भाव की विवेचना करना चाहिये। इसके अतिरिक्त यदि व्यक्ति रोगी हो और जिस अंग पर रोग हो तो कुण्डली में उसी अंग का प्रतिनिधित्व करने वाले भाव का अध्ययन अच्छी तरह करना चाहिये। तत्पश्चात रोग जिस ग्रह के प्रभाव स्वरूप हुआ है, उससे संबंधित रत्न धारण करना चाहिए, अवश्य लाभ होगा।
रत्नों में दैवीय शक्ति होती है और चमत्कार करने की क्षमता भी, किन्तु गलत रत्न धारण करने से लाभ के बजाय हानि भी हो जाती है। रत्न का चुनाव पूर्ण सावधानी और अनुभव से करना चाहिये और रत्न की शुद्धता प्रामाणिक होनी चाहिए, तब ही लाभकारी होंगे। अत: रत्न धारण से पहले भविष्य दर्शन में आकर   परामर्श  लेना  उपयुक्त  होगा I

ज्योतिष और मानसिक रोग ( कारण और निवारण)

मानसिक बीमारी होने के बहुत से कारण होते हैं, इन कारणों का ज्योतिषीय आधार क्या है, इसकी जानकारी के लिये कुंडली के उन योगों का अध्ययन करेंगे जिनके आधार पर मानसिक बिमारियों का पता चलता है.
मानसिक बीमारी में चंद्रमा, बुध, चतुर्थ भाव व पंचम भाव का आंकलन किया जाता है. चंद्रमा मन है, बुध से बुद्धि देखी जाती है और चतुर्थ भाव भी मन है तथा पंचम भाव से बुद्धि देखी जाती है. जब व्यक्ति भावुकता में बहकर मानसिक संतुलन खोता है तब उसमें पंचम भाव व चंद्रमा की भूमिका अहम मानी जाती है. सेजोफ्रेनिया बीमारी में चतुर्थ भाव की भूमिका मुख्य मानी जाती है. शनि व चंद्रमा की युति भी मानसिक शांति के लिए शुभ नहीं मानी जाती है. मानसिक परेशानी में चंद्रमा पीड़ित होना चाहिए.

1- जन्म कुंडली में चंद्रमा अगर राहु के साथ है तब व्यक्ति को मानसिक बीमारी होने की संभावना बनती है क्योकि राहु मन को भ्रमित रखता है और चंद्रमा मन है. मन के घोड़े बहुत ज्यादा दौड़ते हैं. व्यक्ति बहुत ज्यादा हवाई किले बनाता है.

2- यदि जन्म कुंडली में बुध, केतु और चतुर्थ भाव का संबंध बन रहा है और यह तीनों अत्यधिक पीड़ित हैं तब व्यक्ति में अत्यधिक जिदपन हो सकती है और वह सेजोफ्रेनिया का शिकार हो सकता है. इसके लिए बहुत से लोगों ने बुध व चतुर्थ भाव पर अधिक जोर दिया है.

3- जन्म कुंडली में गुरु लग्न में स्थित हो और मंगल सप्तम भाव में स्थित हो या मंगल लग्न में और सप्तम में गुरु स्थित हो तब मानसिक आघात लगने की संभावना बनती है.

4- जन्म कुंडली में शनि लग्न में और मंगल पंचम भाव या सप्तम भाव या नवम भाव में स्थित हो तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है.

5- कृष्ण पक्ष का बलहीन चंद्रमा हो और वह शनि के साथ 12वें भाव में स्थित हो तब मानसिक रोग की संभावना बनती है. शनि व चंद्र की युति में व्यक्ति मानसिक तनाव ज्यादा रखता है.

6- जन्म कुंडली में शनि लग्न में स्थित हो, सूर्य 12वें भाव में हो, मंगल व चंद्रमा त्रिकोण भाव में स्थित हो तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है.

7- जन्म कुंडली में मांदी सप्तम भाव में स्थित हो और अशुभ ग्रह से पीड़ित हो रही हो.

8- राहु व चंद्रमा लग्न में स्थित हो और अशुभ ग्रह त्रिकोण में स्थित हों तब भी मानसिक रोग की संभावना बनती है.

9- मंगल चतुर्थ भाव में शनि से दृष्ट हो या शनि चतुर्थ भाव में राहु/केतु अक्ष पर स्थित हो तब भी मानसिक रोग होने की संभावना बनती है.

10- जन्म कुंडली में शनि व मंगल की युति छठे भाव या आठवें भाव में हो रही हो.

11- जन्म कुंडली में बुध पाप ग्रह के साथ तीसरे भाव में हो या छठे भाव में हो या आठवें भाव में हो या बारहवें भाव में स्थित हो तब भी मानसिक रोग होने की संभावना बनती है.

12- यदि चंद्रमा की युति केतु व शनि के साथ हो रही हो तब यह अत्यधिक अशुभ माना गया है और अगर यह अंशात्मक रुप से नजदीक हैं तब मानसिक रोग होने की संभावना अधिक बनती है.

13- जन्म कुंडली में शनि और मंगल दोनो ही चंद्रमा या बुध से केन्द्र में स्थित हों तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है.

मिरगी होने के जन्म कुंडली में लक्षण

इसके लिए चंद्र तथा बुध की स्थिति मुख्य रुप से देखी जाती है. साथ ही अन्य ग्रहों की स्थिति भी देखी जाती है.

1- शनि व मंगल जन्म कुंडली में छठे या आठवें भाव में स्थित हो तब व्यक्ति को मिरगी संबंधित बीमारी का सामना करना पड़ सकता है.

2- कुंडली में शनि व चंद्रमा की युति हो और यह दोनो मंगल से दृष्ट हो.

3- जन्म कुंडली में राहु व चंद्रमा आठवें भाव में स्थित हों.

मानसिक रुप से कमजोर बच्चे अथवा मंदबुद्धि बच्चे

जन्म के समय लग्न अशुभ प्रभाव में हो विशेष रुप से शनि का संबंध बन रहा हो. यह संबंध युति, दृष्टि व स्थिति किसी भी रुप से बन सकता है.

1- शनि पंचम से लग्नेश को देख रहा हो तब व्यक्ति जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है.

2- जन्म के समय बच्चे की कुण्डली में शनि व राहु पंचम भाव में स्थित हो, बुध बारहवें भाव में स्थित हो और पंचमेश पीड़ित अवस्था में हो तब बच्चा जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है.

3- पंचम भाव, पंचमेश, चंद्रमा व बुध सभी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तब भी बच्चा जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है.

4- जन्म के समय चंद्रमा लग्न में स्थित हो और शनि व मंगल से दृष्ट हो तब भी व्यक्ति मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है.

5- पंचम भाव का राहु भी व्यक्ति की बुद्धि को भ्रष्ट करने का काम करता है, बुद्धि अच्छी नहीं रहती है

मेरे विचार से  मानसिक बीमारियों  के निवारण हेतु  बुध को  बल प्रदान करना सर्वथा उपयुक्त होगा I ऐसे व्यक्ति को पन्ना रत्न की अंगूठी चाँदी  में बनवाकर दाहिने हाथ की कनिष्ठा अंगुली में  धारण करना चाहिए I  कुछ विशेष परिस्थितिओं  में गले में भी धारण किया जा सकता है I पन्ना का भष्म  आदि भी खिलाना लाभप्रद होगा I प्रज्ञा मन्त्र का अनुष्ठान एवं अपामार्ग की लता से हवन भी  कराना चाहिए I

बीमारियों  का उपचार रत्नों के माध्यम से
उच्च रक्तचाप और रत्न चिकित्सा:- चन्द्रमा हृदय का स्वामी है। चन्द्रमा के पीड़ित होने पर इस रोग की संभावना बनती है। जिनकी जन्मपत्री में सूर्य, शनि, चन्द्र, राहु अथवा मंगल की युति कर्क राशि में होती है उन्हें भी इस रोग की आशंका रहती है। पाप ग्रह राहु और केतु जब चन्द्रमा के साथ योग बनाते हैं तब इस स्थिति में व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना होता है। मिथुन राशि में पाप ग्रहों की उपस्थिति होने पर भी यह रोग पीड़ित करता है। इस रोग की स्थिति में 7-9 रत्ती का मूंगा धारण करना लाभप्रद होता है। चन्द्र के रत्न मोती या मूनस्टोन  भी मूंगा के साथ धारण करने से विशेष लाभ मिलता है।

तपेदिक और रत्न चिकित्सा:-  तपेदिक एक घातक रोग है। नियमित दवाईयों के सेवन से इस रोग को दूर किया जा सकता है। अगर उपयुक्त रत्नों को धारण किया जाए तो चिकित्सा का लाभ जल्दी प्राप्त हो सकता है। ज्योतिष विधा के अनुसार जब मिथुन राशि में चन्द्रमा, शनि, अथवा बृहस्पति होता है या कुम्भ राशि में मंगल और केतु पीड़ित होता है तो तपेदिक रोग की संभावना बनती है। इस रोग से पीड़ित होने पर पुखराज, मोती अथवा मूंगा धारण करना लाभप्रद होता है।

पैरों में रोग और रत्न चिकित्सा  :-शरीर के अंगों में पैरों का स्वामी शनि होता है। पैरों से सम्बन्धित पीड़ा का कारण शनि का पीड़ित या पाप प्रभाव में होना है। ज्योतिषीय मतानुसार जन्मपत्री के छठे भाव में सूर्य अथवा शनि होने पर पैरों में कष्ट का सामना करना होता है। जल राशि मकर, कुम्भ अथवा मीन में जब राहु, केतु, सूर्य या शनि होता है तब पैरों में चर्म रोग होने की संभावना बनती है। पैरों से सम्बन्धित रोग में लाजवर्त, नीलम अथवा नीली एवं पुखराज धारण करने से लाभ मिलता है।

त्वचा रोग और रत्न चिकित्सा :-शुक्र त्वचा का स्वामी ग्रह है। बृहस्पति अथवा मंगल से पीड़ित होने पर शुक्र त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे दाद, खाज, खुजली, एक्जीमा देता है। कुण्डली में सूर्य और मंगल का योग होने पर भी त्वचा सम्बन्धी रोग की सम्भावना रहती है। मंगल मंद होने पर भी इस रोग की पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है। जन्मपत्री में इस प्रकार की स्थिति होने पर हीरा, स्फटिक या मूंगा  धारण करने से लाभ मिलता है।

बवासीर और रत्न चिकित्सा :-बवासीर गुदा का रोग है। जन्मकुण्डली का सप्तम भाव गुदा का कारक होता है। जिनकी जन्मपत्री के सप्तम भाव में पाप ग्रहों की उपस्थिति होती है उन्हें इस रोग की संभावना रहती है, मंगल की दृष्टि इस संभावना को और भी प्रबल बना देती है। मंगल की राशि वृश्चिक कुण्डली में पाप प्रभाव में होने से भी बवासीर होने की संभवना को बल मिलता है। अष्टम भाव में शनि व राहु हो अथवा द्वादश भाव में चन्द्र और सूर्य का योग हो तो इस रोग की पीड़ा का सामना करना होता है। इस रोग में मोती, मूनस्टोन अथवा मूंगा धारण करना रत्न चिकित्सा की दृष्टि से लाभप्रद होता है।

भूलने की बीमारी और रत्न चिकित्सा :- इस रोग में बीती हुई बहुत सी घटनाएं अथवा बातें याद नहीं रहती है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुण्डली में जब लग्न और लग्नेश पाप पीड़ित होते हैं तो इस प्रकार की स्थिति होती है.सूर्य और बुध जब मेष राशि में होता है और शुक्र अथवा शनि उसे पीड़ित करते हैं तो स्मृति दोष की संभावना बनती है.साढे साती के समय जब शनि की महादशा चलती है उस समय भी भूलने की बीमारी की संभावना प्रबल रहती ह.रत्न चिकित्सा पद्धति के अनुसार मोती और माणिक्य धारण करना इय रोग मे लापप्रद होता है I

सफेद दाग़ और रत्न चिकित्सा :- सफेद दाग़ त्वचा सम्बन्धी रोग है.इस रोग में त्वचा पर सफेद रंग के चकत्ते उभर आते हैं.यह रोग तब होता है जब वृष, राशि में चन्द्र, मंगल एवं शनि का योग बनता है.कर्क, मकर, कुम्भ और मीन को जल राशि के नाम से जाना जाता है.चन्द्रमा और शुक्र जब इस राशि में युति बनाते हैं तो व्यक्ति इस रोग से पीड़ित होने की संभावना रहती है.बुध के शत्रु राशि में होने पर अथवा वक्री होने पर भी इस रोग की संभावना बनती है.इस रोग की स्थिति में  मोती एवं पुखराज धारण करने से लाभ मिलता है I

गंजापन और रत्न चिकित्सा :- गंजापन बालों के झड़ने से सम्बन्धित रोग है.आनुवांशिक कारणों के अलावा यह रोग एलर्जी अथवा किसी अन्य रोग के कारण होता है.जिनकी कुण्डली के लग्न स्थान में तुला अथवा मेष राशि में स्थित होकर सूर्य शनि पर दृष्टि डालता है उन्हें गंजेपन की समस्या से पीड़ित होने की संभावना अधिक रहती है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नीलम और पन्ना धारण करके इस समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है I

मधुमेह और रत्न चिकित्सा :- ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मधुमेह यानी डयबिटीज का सामना उस स्थिति में करना होता है जबकि कर्क, वृश्चिक अथवा मीन राशि में पाप ग्रहों की संख्या दो या उससे अधिक रहती है.लग्नपति के साथ बृहस्पति छठे भाव में हो तुला राशि में पाप ग्रहों की संख्या दो अथवा उससे अधिक हो तो इस रोग की संभावना बनती है.अष्टमेश और षष्ठेश कुण्डली में जब एक दूसरे के घर में होते हैं तब भी इस रोग का भय रहता है.रत्न चिकित्सा के अन्तर्गत इस रोग में मूंगा और पुखराज धारण करना लाभप्रद होता है I
दन्त रोग और रत्न ज्योतिष :- दांतों का स्वामी बृहस्पति होता है.कुण्डली में बृहस्पति के पीड़ित होने पर दांतों में तकलीफ का सामना करना होता है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार बृहस्पति जब नीच राशि में होता है अथवा द्वितीय, नवम एवं द्वादश भाव में होता है तब दांत सम्बन्धी तकलीफ का सामना करना होता है.मूंगा और पुखराज इस रोग में लाभदायक होता है I
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