दोष निवारक कवच

कालसर्प दोष निवारक कवच
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           कालसर्प योग अथवा दोष का नाम मूल शास्त्रीय ग्रंथों में उल्लिखित नहीं है और वहां इतना हौवा भी नहीं इस योग का |मूल ग्रंथों में राहू -केतु के बीच सभी ग्रहों के आ जाने को एक योग अवश्य माना जाता है और इसके भिन्न प्रभाव भी होते हैं |आज इसी को कालसर्प दोष कहा जाता है |इस योग में मुख्य भूमिका राहू की ही होती है जबकि कुछ कम प्रभाव केतु का भी पड़ता है |इस योग में उत्पन्न जातक जीवन में कुछ कमियाँ भी पाता है और खुद में कुछ विशेषताएं भी पाता है |कमियों ,दोषों ,दुष्प्रभावों के निवारण के लिए ही शान्ति के उपाय किये जाते हैं |कालसर्प योग जन्म कुंडली में ,सभी ग्रहों के राहू -केतु के बीच आ जाने पर बनता है |यह एक ज्योतिषीय योग होता है जो बारह प्रकार का होता है |ऐसा योग कुंडली में होने पर स्वास्थ्य ,संतान , संपत्ति और दाम्पत्य सुख में से एक कम होने लगता है |यह चारो एक साथ मिलने मुश्किल हो जाते हैं|इस दोष के निवारण के अनेक उपाय ज्योतिषीय शास्त्रों में बताये गए हैं ,किन्तु कोई भी उपाय नैसर्गिक कुंडली में विद्यमान ग्रह की स्थिति में परिवर्तन नहीं कर सकता जिसके अनुसार व्यक्ति का स्वभाव ,शरीर और व्यक्तित्व निर्मित हुआ है |इस स्वभाव ,चरित्र ,गुण -दोष ,व्यक्तित्व ,आचरण के कारण ही व्यक्ति को उपरोक्त सुख में से कमी होती है ,अतः उपाय एक सीमा तक काम करते हैं |
          उपायों में अधिकतर राहू -केतु के प्रभाव कम करने या दोष कम करने के प्रयास होते हैं या उन्हें अनुकूल करने के प्रयास होते हैं |कुछ उपायों में दैवीय कृपा के भी प्रयास होते हैं |कुछ मामलों में जबकि कालसर्प दोष का प्रभाव कम हो यह उपाय काम कर जाते हैं और व्यक्ति को लाभ होता दीखता है ,किन्तु जब प्रभाव अधिक हो तब उसे लाभ कम दीखता है |व्यक्ति को बार बार बताया जाता है की कालसर्प दोष है ,इसलिए कष्ट है |वह उपाय पर उपाय करता है किन्तु कष्ट पूरी तरह समाप्त नहीं होता |कारण यह की ग्रह स्थिति न तो बदली जा सकती है ,न व्यक्ति के नैसर्गिक गुण बदले जा सकते हैं तथा दोष के प्रभाव भी अधिक होते हैं जिसकी तुलना में उपायों की ऊर्जा पर्याप्त नहीं होती |उपायों में एक बात और होती है की व्यक्ति का शरीर अथवा व्यक्ति इससे सीधे नहीं जुड़ा होता जबकि प्रभाव उसके शरीर और व्यक्तित्व पर ही ग्रहों का होता है |
        इस स्थिति से बचने के लिए ही यन्त्र और कवच की परिकल्पना की गयी |जहाँ ग्रहों का अनुकूलन भी हो ,और व्यक्ति का शरीर भी सीधे इससे जुड़ा रहे |इसके साथ किसी उच्च शक्ति का भी इसमें सहारा लिया जाता है ताकि नैसर्गिक रूप से शरीर में इन ग्रहों के स्थितियों के कारण क्रियाशील चक्रों ,ऊर्जा धाराओं के अतिरिक्त अन्य ऊर्जा धारा और चक्र को भी अधिक क्रियाशील कर दिया जाए ,जिससे एक भिन्न प्रकार की समेकित ऊर्जा उत्पन्न होने लगे और कालसर्प के नैसर्गिक प्रभाव बदल जाएँ |यद्यपि कालसर्प दोष निवारण में भी यंत्रों का प्रयोग होता है किन्तु धारणीय यंत्रों और कवच में इनके साथ अथवा अलग से उच्च शक्ति के यन्त्र डाले जाते हैं जो की ग्रहों के प्रभाव को भी अपनी ऊर्जा से प्रभावित कर सके और व्यक्ति में अलग गुण ,सोच ,व्यक्तित्व ,समझदारी ,पुरुषार्थ उत्पन्न करने के साथ ही ग्रहीय स्थितियों से उत्पन्न नकारात्मकता को हटा सके |

            कालसर्प दोष निवारण हेतु भिन्न भिन्न विद्वान् भिन्न भिन्न पद्धति अपनाते हैं |इस हेतु बनाए जाने वाले कवच /यन्त्र /ताबीज में राहू -केतु के यंत्रों के साथ ही इनसे सम्बन्धित और इनके प्रभाव को शांत करने वाले वनस्पतियों का भी उपयोग किया जाता है |मूल रूप से यह एक तांत्रिक उपाय है जहाँ कुछ विशिष्ट अन्य पदार्थों और जड़ों -वनस्पतियों का भी उपयोग किया जाता है जिससे राहू -केतु के दुष्प्रभाव को अलौकिक उर्ज्जा द्वारा रोका जा सके |अधिक गहरा दुष्प्रभाव होने पर इन कवच के साथ महाविद्याओं की शक्ति को भी संयुक्त किया जाता है |इस प्रकार यह यन्त्र सीधे व्यक्ति से जुड़ा होने के कारण अधिक प्रभाव डालते हैं ,यद्यपि ग्रहीय स्थिति तो यह कोई भी नहीं बदल सकता किन्तु प्रभाव जरुर बदल जाते हैं और अलग परिणाम दिखने लगते हैं |जो लोग अनेक उपाय कर चुके हों कालसर्प दोष से बचने के ,अथवा जो उपायों पर अधिक खर्च नहीं कर सकते हों ,अथवा जो निराश हो रहे हों की कई उपायों के बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आ रहा ,उन्हें इन तरह के कवच को आजमाना चाहिए |उनकी समस्या का निदान हो सकता है |........................................................
नवरात्रि में विशेष रूप से इस यंत्र को सिद्ध करने की तैयारी हैं अतः आप अपनी नाम गोत्र दे कर इसे अभिमन्त्रित कराकर अवश्य मंगाए।।
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पं:अभिषेक शास्त्री
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