Marriage and sexual life [Post- 2]



                           जी हाँ , आपने मेरे पहले पोस्ट जैसा की पढ़े और समझे है, आज फिर हम उसी विषय पर                                    अपनी नयी और दूसरी आर्टिकल प्रस्तुत कर रहें हैं। 
पहली और सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है की हमे वर और वधु की अलग - अलग विशेस्ताओ की जाँच उनकी कुंडली के आधार पर करनी चाहिए।  पुरुष की कुंडली में उसकी आयु उसका सातवाँ भाव एवं विवाह और उसके बाद में आने वाली दसा -अन्तर्दशा का अध्ययन आवश्यक है।  आयु के लिए ग्रहयोग और दसा  दोनों प्रकार  विचार करना चाहिए।
              अकाल मृत्यु , दुर्घटना , हृदयावरोध आदि अशुभ और मारक दशाओ में घटित होते है। प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रन्थों में 'कलत्र दोष '  से योग मिलते है ,  पुरुष की कुंडली में उनका परिहार आवश्यक है। 
इस आर्टिकल का संकेड़ पार्ट के लिए आप हमे कमेंट में बताय और आपको यह पोस्ट कैसा लगा यह भी बताने की कृपा करें 
       धन्यबाद। 

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