भारतीय समाज में विवाह अत्यंत महवपूर्ण धार्मिक एवं आवश्यक संस्कार है।
बहुत प्राचीन समय से विवाह के लिए कुंडलियों का मिलान करने की प्रथा चली आरही है।इस प्रथा का आशय केवल परम्परा का निर्वाह ही नहीं हैं , अपितु गुण -धर्म -स्व्भाव और प्रकृति के अनुरूप उपुक्त जीवन -साथी की खोज भी है।
भारतीय ज्योतिष नक्षत्र , योग , ग्रह राशि अदि तत्वों के आधार पर व्यक्ति के स्व्भाव व गुण का निस्चय करता है और बतलाता है की अमुक नक्षत्र ,ग्रह और राशि के प्रभाव में उत्पन्न नारी के साथी संबन्ध करना अनुकूल है। इस प्रकार कुंडलियों के मिलान की यह प्रथा वैज्ञानिक और व्यावहारिक दृस्टि से अत्यंत उपयुक्त और प्रभावसाली है।
भारतीय ज्योतिष मे जन्म-नक्षत्र के चरणों के आधारों पर कुंडली मिलान की परम्परा चली आरही है।
प्रत्येक प्रान्त और भासा के पञ्चांग में इससे संबधित चक्र और सरणिया बनी होती हैं , और सामान्य जानकारी रखने वाले ज्योतिष -प्रेमी भी सरलता से वर -बधु के पारस्परिक गुणों का पता लगा सकते हैं।
प्रस्तुत अध्याय में कुंडलीयो के मिलान की इस प्रथा के साथ - साथ कुछ अन्य सरल , परन्तु अनुभूत और प्रभावशाली बातों का विवचेना भी किया जारहा है।
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