सुख-समृद्धिकारक हनुमान साधना

सुख-समृद्धिकारक हनुमान साधना
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श्री हनुमान साधना एवं मंत्रों के संदर्भ में मंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि, हनुमदोपासना, श्री विद्यार्णव आदि ग्रंथों में कई प्रयोग वर्णित हैं। कलि युग में हनुमान साधना समस्त बाधाओं, कष्टों और अड़चनों को तुरंत मिटाने में पूर्णतः सहायक है। हनुमान शक्तिशाली, पराक्रमी, संकटों का नाश करने वाले और दुःखों को दूर करने वाले महावीर हैं। इनके नाम का स्मरण ही अपने आप में सहायता और शक्ति प्रदान करने वाला है।शास्त्रों में भगवान श्री हनमुनजी से संबंधित अनेक साधनाएं वर्णित की गयी हैं, जो अलग-अलग परिस्थितियों को ध्यान में रख कर रची गयी हैं। यह उनकी विराटता और उनके वरदायक स्वरूप का ही उदाहरण है। शत्रु भय हो, या आकस्मिक राज्य बाधा, अथवा भूत-प्रेत आदि का प्रकोप, प्रत्येक स्थिति के लिए अलग-अलग ढंग से मंत्रों और होम की व्यवस्था बनायी गयी है। इन्हीं सैकड़ों प्रयोगों में से आयु, धन-वृद्धि एवं समस्त प्रकार के उपद्रवों को दूर करने के संबंध में एक अचूक मंत्र ‘‘अष्टादशाक्षर मंत्र’’ का उल्लेख मिलता है, जिसका उपयोग कर कोई भी व्यक्ति शीघ्र लाभ प्राप्त कर सकता है। इस अष्टादशाक्षर मंत्र के संदर्भ में मंत्र महोदधि में कहा गया है।
 यः कपी श् सदा गे ह पूजयेज्जपतत्परः। आयुर्लक्ष्म्यौ प्रवद्र्धेते तस्य नश्यन्त्युपद्रवा।। (त्रयोदशः तरंग: 97) अर्थात, जो व्यक्ति अपने घर में सदैव हनुमान जी का पूजन करता है और इस मंत्र का जप करता है, उसकी आयु तथा लक्ष्मी (संपत्ति) नित्य बढ़ती रहती है तथा उसके समस्त उप्रदव अपने आप नष्ट हो जाते हैं। वास्तव में हनुमान जी समस्त अभीष्ट फलों को प्रदान करने वाले श्रेष्ठ देवता हैं:- ‘‘हनुमान देवता प्रोक्तः सर्वाभीष्टफलप्रदः’’ (श्री विद्यार्णक 28.11)
अष्टादशाक्षर मंत्र:
--------------------- ‘नमो भगवते आन्जनेयाय महाबलाय स्वाहा’’।
 इस मंत्र के ईश्वर ऋषि हैं, अनुष्टुप छंद हैं, हनुमान देवता हैं, हुं बीज है तथा अग्निप्रिया (स्वाहा) शक्ति है।
मंत्र संख्या:
------------- दस हजार पुरश्चरण: उक्त जप का तिलों से दशांश होम करना चाहिये। साधना विधि:
--------------- सर्वप्रथम प्राण प्रतिष्ठित (चैतन्य) हनुमान यंत्र को प्राप्त कर, किसी मंगलवार (विशेष कर शुक्ल पक्ष) की रात्रि से इस साधना को दस दिन के लिए प्रारंभ करें। इसमें प्रतिदिन एक निश्चित समय पर ही पूजन एवं दस माला जप करें। इस साधना में स्नान कर, लाल वस्त्र धारण कर के, दक्षिणाभिमुख हो कर लाल रंग के ऊनी आसन पर बैठ कर पूजन एवं जप करना आवश्यक है। जप हेतु मंगे की माला, या लाल चंदन की माला, या रुद्राक्ष की माला आवश्यक है।
 सर्वप्रथम हनुमान यंत्र को लकड़ी की चैकी पर, लाल वस्त्र बिछा कर मध्य में ताम्र पात्र में स्थापित करें। गुरु का ध्यान कर घी का दीपक तथा धूप बत्ती जलाएं। अब दिये गये क्रमानुसार पूजन प्रारंभ करें: विनियोग: दायें हाथ में जल, पुष्प तथा चावल ले कर, निम्न मंत्र को बोल कर, किसी पात्र में हाथ की सामग्री छोड दें।
विनियोग
------------- ‘अस्य श्री हनुमन्मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिरनुष्टुप् छन्दः हनुमान देवता हुं बीजं स्वाहा शक्तिरात्मानोऽभीष्टसिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः।’’
 षङ्गन्यास:
--------------- अब निम्न क्रमानुसार न्यास विधि करें: ॐ आँजनेयाय हृदयाय नमः, ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा, ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट्, ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम्, ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्, ॐ ब्रह्मास्त्रविनिवारणाय अस्त्राय फट्।।
 ध्यान मंत्र:
-------------- दाहिने हाथ में सिंदूर से रंगे चावल तथा लाल पुष्प ले कर, निम्न मंत्र बोल कर, ‘हनुमान यंत्र’ पर छोड़ देवें। साधक संस्कृत न बोल सके, तो हिंदी का भावार्थ बोलें।
 ‘‘दहनतप्तसुवर्णसमप्रभं भयहरं हृदये विहितान्जलिम ।
श्रवणकुण्डलशोभिमुखाम्बुजं नमत वानरराजमिहाद्भुतम्।।’’
 भावार्थ: मैं तपाये गये सुवर्ण के समान जगमगाते हुए, भय को दूर करने वाले, हृदय पर अंजलि बांधे हुए, कानों में लटकते कुंडलों से शोभायमान मुख कमल वाले, अद्भुत स्वरूप वाले वानर राज को प्रणाम करता हूं।
अब हनुमान यंत्र को शुद्ध जल से स्नान करा कर यज्ञोपवीत अर्पित करें। इसके बाद यंत्र को तिल के तेल में मिश्रित सिंदूर का तिलक अर्पित करें तथा अंगुली पर बचे हुए सिंदुर को अपने मस्तिष्क पर तिलक के रूप में धारण करें। श्री हनुमान यंत्र पर लाल पुष्पों की माला अर्पित कर नैवेद्य रूप में गुड़, घी तथा आटे से बनी रोटी को मिला कर बनाये गये लड्डू अर्पित करें। श्री विग्रह (यंत्र) को फल अर्पित कर, मुखशुद्धि हेतु पान, सुपाड़ी, लौंग तथा इलायची अर्पित करें। अब उसी स्थान पर बैठ कर ही अष्टादशाक्षर मंत्र की 10 माला, यानी एक हजार जप कर, भगवान हनुमान जी को षाष्टांग प्रणाम करें। पूजन काल में भूलवश यदि त्रुटि रह गयी हो, तो क्षमा मांगें। यही क्रम 10 दिन करना है। दसवें दिन, किसी योग्य विद्वान के सान्निध्य में, तिलों से दशांश होम कर, ब्राह्मण को भोजन-दक्षिणा दे कर, संतुष्ट कर, विदा करें।
 विशेष:
---------- अर्पित नैवेद्य को अगले दिन हटा कर किसी पात्र में इकट्ठा करते रहें। साधना पूर्ण होने के अगले दिन एकत्रित नैवेद्य को किसी गरीब को दें। इस प्रकार उक्त दिव्य मंत्र सिद्ध हो जाता है। सिद्ध मंत्र से कामना पूर्ति प्रयोग:
 1-धन एवं आयु वृद्धि के साथ-साथ समस्त प्रकार के उपद्रवों की शांति हेतु नित्य हनुमान जी की आराधना एवं एक माला जप आजीवन करते रहें।
 2-अल्पकालिक रोगों से पीड़ित होने पर, इंद्रियों को वश में रख कर, केवल रात्रि में भोजन करें तथा तीन दिन 108 संख्या में इस मंत्र का जप करें, तो अल्पकालिक रोगों से छुटकारा मिल जाता है।
3-असाध्य एवं दीर्घकालीन रोगों से मुक्ति पाने के लिए प्रतिदिन एक हजार की संख्या में जप आवश्यक है।
4-‘‘महारोगनिवृत्त्यै तु सहस्रं प्रत्यहं जपेत्’’ हनुमान जी का ध्यान कर मंत्र का जप करता हुआ व्यक्ति अपना अभीष्ट कार्य पूर्ण कर शीघ्र ही घर लौट आता है।
5-‘‘प्रयाणसमये ध्यायन्हनुमन्तं मनुं जपन्।साधयित्वाग्रहं व्रजेत्।।’’ इस मंत्र के नित्य जपने से पराक्रम में वृद्धि होती है तथा सोते समय चोरों से रक्षा होती है एवं दुःस्वप्न भी दिखायी नहीं देते हैं। साथ ही उपद्रवी तत्वों से रक्षा होती है।
साधना के आवश्यक नियम:
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 1-पूर्ण साधना काल में अखंड ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें।
 2-मंत्र जप करते समय दृष्टि सदैव यंत्र पर ही टिकी रहे।
3-शयन साधना स्थल पर ही धरती पर करें।
4-इस साधना में घी से एक या पांच बत्तियों वाला दीपक जलाएं।
5-भोजन सिर्फ एक बार ही करें। वास्तव में विपत्तियों से छुटकारा तथा सुख-समुद्धि में वृद्धि हेतु यह प्रयोग अपने आप में अचूक और अद्वितीय है |....................................................
जय श्री नारायण
पँ अभिषेक कुमार
      9472998128

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