शिव भक्त राहु


हरण्यकश्यप की सिंहिका नामक पुत्री का विवाह विप्रचिति नामक दानव के साथ हुआ था उसी के गर्भ से राहु ने जन्म लिया। विप्रचिति हमेशा दानवी शक्तियों, आसुरी शक्तियों से दूर रहे और साथ ही समुद्र मंथन के समय अमृतपान के कारण राहु को अमरत्व एवं देवत्व की प्राप्ति हुई। तभी से शिव भक्त राहु अन्य ग्रहों के साथ ब्रह्मा जी की सभा में विराजमान रहते हैं इसलिए इन्हें ग्रह के रूप में मान्यता मिली। जन्मकुंडली में राहु पूर्व जन्म के कर्मों के बारे में बताता है। राहु परिवर्तनशील, अस्थिर प्रकृति का ग्रह माना जाता है। राहु में अंतर्दृष्टि भी होती है ताकि वह काल की रचनाओं के बारे में सोच सके बता सके। भौतिक दृष्टि से इसका कोई रंग, रूप, आकार नहीं है, इसकी कोई राशि, वार नहीं होता। वैदिक ज्योतिषियों ने इसकी स्वराशि, उच्च राशि और मूलत्रिकोण राशियों की कल्पना की है। जातक परिजात में राहु की उच्च राशि मिथुन, मूलत्रिकोण कुंभ और स्वराशि कन्या मानी गई है। राहु का व्यवहार अत्यंत प्रभावशाली देखा गया है। राहु पूर्वाभास की योग्यता भी विकसित करता है। 


विशेषकर जब राहु जल राशियों कर्क, वृश्चिक, मीन में हो और उस पर बृहस्पति की दृष्टि हो। राहु छुपे हुए रहस्यों, तंत्र, मंत्र, काला जादू व भूत प्रेत का कारक भी है। राहु की तामसिक प्रवृत्ति के कारण वह चालाक है और व्यक्ति को भौतिकता की ओर पूर्णतया अग्रसर करता है, बहुत महत्वाकांक्षी व लालची बनाता है, जिसके लिए व्यक्ति साम-दाम-दंड-भेद की नीतियां अपनाकर जीवन में आगे बढ़ता है। इसी तरह यह व्यक्ति को भ्रमित भी रखता है। एक के बाद दूसरी इच्छाओं को जागृत करता है। इन्हीं इच्छाओं की पूर्ति हेतु वह विभिन्न धार्मिक कार्य व यात्राएं भी करता है। राहु प्रधान व्यक्ति में दिखावा करने की प्रवृत्ति विशेष रूप से पायी जाती है। राहु कार्य जाल में फंसाता है, जीवन में आकर्षण को बनाये रखता है, हार नहीं मानता अर्थात इच्छा शक्ति को जागृत रखता है।


 राहु का योग जन्म पत्रिका में जिस ग्रह के साथ होगा उसी में विकार उत्पन्न हो जायेगा और केतु का योग जिस ग्रह के साथ होगा उसकी काट होगी। उसका दोष कम हो जायेगा। कोई भी ग्रह राहु के मुख में होगा उस व्यक्ति का व्यवहार उस भाव से संबंधित असंयमित हो जायेगा। सूर्य के निकट रहने पर राहु सूर्य का सारा बल ग्रहण कर लेता है। इसलिए उस कुंडली को जिसमें ग्रहण दोष लग जाता है उसे अंधा टेवा कहा जाता है। इस प्रकार राहु चंद्र के साथ मन की स्थिति बहुत अव्यवस्थित करके मन में उथल-पुथल मचा देता है। विचारों और भावनाओं में विकार उत्पन्न हो जाता है। ऐसा देखने में आया है कि जिन जातकों की जन्मपत्रिका में राहु और चंद्रमा की युति हो वे बहुत परेशान देखे गये हैं, मानसिक सामंजस्यता की बेहद कमी देखी गयी है। अन्य पाप ग्रहों का भी दृष्टि या युति संबंध हो तो मानसिक रोगी व पागलपन की स्थिति भी देखी गयी है। राहु गुरु के साथ मिलकर गुरु चांडाल योग का निर्माण करता है जो विवाह व ज्ञान प्राप्ति में बाधा बन जाता है। इस प्रकार राहु सभी ग्रहों के साथ युति करके किसी न किसी प्रकार का विकार उत्पन्न करता है। किंतु यह सब फल राहु की दशा अंतर्दशा आने पर ही मिलते हैं। मित्र राशियों में शुभ व शत्रु राशियों में अशुभ फल देते हैं। राहु के परिणाम शुभ मिलेंगे या अशुभ यह मूलतः नक्षत्रों द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। राहु के अपने नक्षत्र हैं आद्र्रा, स्वाति एवं शतभिषा। इन नक्षत्रों में राहु रहने पर शुभ परिणाम देता है। विभिन्न नक्षत्रों के फल अलग-अलग हैं। राहु एक रहस्यमयी ग्रह है जो पृथ्वी के नजदीक है, अतः जल्दी फल देता है। इसका वर्णन जितना करें कम है।

 1. राहु यदि अश्विनी नक्षत्र में हो तो व्यक्ति शक्ति व सम्मान प्राप्त करता है। राहु जिस भाव में होता है उस भाव से संबंधित यश प्राप्त होगा।
 2. राहु यदि भरणी नक्षत्र में हो तो व्यक्ति साहसी, लालची, बहुत मजबूत इरादों वाला होता है। 
3. कृतिका नक्षत्र में राहु स्थित हो तो व्यक्ति बहुत होशियार तथा ज्ञानवान होता है। वह विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होता है। 
4. रोहिणी चन्द्रमा का नक्षत्र है। इसमें यदि राहु स्थित हो तो व्यक्ति मितभाषी और मधुर स्वभाव का प्यारा सा होता है।
 5. मृगशिरा नक्षत्र में राहु व्यक्ति को हिम्मतवाला तथा होशियार बनाता है किंतु अपनी बात को कहने में असुविधा महसूस करता है।
 6. आद्र्रा नक्षत्र में राहु हो तो व्यक्ति चतुर, बुद्धिमान ज्ञानवान होता है और सामने वाले को अंधेरे में रखने की योग्यता रखता है।
 7. पुनर्वसु बृहस्पति का नक्षत्र है इसमें राहु दो प्रकार से फल देता है अच्छा व बुरा कुछ भी अचानक संभव होता है।
 8. शनि के पुष्य नक्षत्र में राहु हो तो व्यक्ति को शौर्य, साहस, सम्मान की प्राप्ति होती है। लेकिन दो विवाह होते हैं।
 9. आश्लेषा नक्षत्र बुध का नक्षत्र है। इसमें राहु हो तो व्यक्ति विचलित रहता है उसके कर्म, विचार, आय तीनों में स्थिरता नहीं रहती। 
10. केतु के मघा नक्षत्र में राहु राजसी जीवन, आनंद, भोग-विलास राज सम्मान प्राप्त कराता है। 
11. शुक्र के पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में राहु यात्रा करने वाला व अस्थिर, भ्रमित होता है।
 12. सूर्य के उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में राहु व्यक्ति को एक बहुत सम्मानित, समाज में नाम कमाने वाला बनाता है। 13. चंद्रमा के हस्त नक्षत्र में राहु अति चंचल, कर्मशील, अस्थिर मन, बुद्धि वाला हो जाता है। इसमें राहु टिककर नहीं बैठने देता।
 14. मंगल के चित्रा नक्षत्र में राहु हो तो व्यक्ति सत्ता प्राप्त करता है पद का हमेशा इच्छुक बना रहता है शासन करता है।
 15. स्वाति नक्षत्र में जिनका राहु स्थित होता है वे भ्रमित रहते हैं। समझ नहीं पाते उन्हें हमेशा प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। 
16. विशाखा नक्षत्र में राहु बेहद प्रसिद्ध हो जाता है लेकिन घमंड व ईष्र्यावश झगड़े में फंसा रहता है।
 17. अनुराधा नक्षत्र में राहु रहने पर व्यक्ति मिलनसार, बहुत से मित्रों से युक्त होता है। 
18. ज्येष्ठा नक्षत्र में राहु रहने पर व्यक्ति को कर्तव्यनिष्ठ, बुद्धिमान व चतुर बनाता है। 
19. मूल नक्षत्र केतु का नक्षत्र है। राहु मूल नक्षत्र में रहने पर व्यक्ति विवाद में फंसा रहता है दूसरों की संपत्ति व अन्य चीजों को प्राप्त करना चाहता है।
 20. शुक्र के पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में राहु बहुत अच्छा व्यापारी बनाता है और व्यक्ति खूब धन कमाता है।
 21. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में स्थित राहु बहुत मिलनसार, सुखी, धनी व विदेशों में यात्रा करवाता है। 
22. श्रवण नक्षत्र में राहु का फल उत्तम नहीं होता। जीवन साथी से कलह करवाता है।
 23. धनिष्ठा नक्षत्र में राहु बहुत कीर्तिवान, यश प्राप्त करने वाला व सम्मानित बनाता है। 
24. शतभिषा नक्षत्र में राहु परम साहसी बनाता है। व्यक्ति खतरों से खेल जाता है किंतु स्वास्थ्य कमजोर रहता है। 25. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में राहु बीमार, अहंकारी, क्रोधी, परेशान बनाता है। 
26. उत्तराभाद्रपद में राहु रहने पर व्यक्ति को जल से भय होता है। नदी, समुद्र से दूर रहना चाहिए।
 27. रेवती नक्षत्र में राहु अति उत्तम भाग्यवान, भाग्योदय विदेश में होता है। इस प्रकार राहु के विभिन्न फल हैं। यहां तक कि इस महादशा में छः छः वर्ष के तीन प्रकार के फल प्राप्त होते हैं। प्रथम भाग संघर्ष में द्वि तीय भाग उत्थान, प्रगति पर एवं अंतिम सीढ़ियां उतरने जैसा। इसके साथ-साथ गोचर फल भी देखें। राहु के सार्थक उपाय भगवान शिव का हलाहल पान और राहु का गहरा संबंध है। शक्ति की पूजा राहु से प्रेरित है। मां सरस्वती को राहु की अभीष्ट देवी माना गया है अर्थात ज्ञान व बुद्धि की देवी का आशीर्वाद भी राहु देव को प्राप्त है। ज्ञान, भक्ति एवं शक्ति का अद्भुत संगम हैं राहु देव। राहु देव की स्तुति निम्न श्लोक से आरंभ करनी चाहिए। ‘‘अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्य विमर्दनम। सिंहिका गर्भ सम्भूतं राहु प्रणमाम्यहम्।। जातक की जन्मपत्रिका में यदि राहु किसी भी प्रकार से अशुभ परिणाम दे रहा हो तो निम्न उपाय करें। यदि राहु महादशा-अंतर्दशा आरंभ होने वाली हो तो उससे पूर्व किये गये उपायों से अशुभ परिणामों से बचा जा सकता है। राहु मंत्र का जाप शुभ मुहूर्त में जब चंद्र और तारा अनुकूल हों, विशेषकर बुधवार या शनिवार हो और पंचमी तिथि हो तो राहु मंत्र का जाप करें। वैदिक मंत्र ऊँ कयाऽनश्चिश्र आभुवदूती सदा वृधः सरवा कया शचिष्ठयावृत्ता।। ऊँ राहवे नमः यह राहु का वैदिक मंत्र है विशेष प्रभावशाली है। रुद्राक्ष माला से सूर्योदय के समय करें। मंत्र का उच्चारण शुद्ध करें। काला ऊनी आसन बिछाकर, उसपर बैठकर ही करें।
 राहु गायत्री मंत्र ऊँ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात्।। ऊँ राहवे नमः।। राहु एकाक्षरी मंत्र: ऊँ रां राहवे नमः।। - जिन मंत्रों का जाप आप शुद्धता व निरंतरता व शुद्ध उच्चारण से कर सकें, वही मंत्र जाप करें। नाग पूजा राहु सर्प माने गये हैं। राहु शांति के लिए नाग पूजा शास्त्रोक्त रीति से की जाती है। जीवन में कोई भी मनोकामना हो उसकी पूर्ति हेतु नव नाग स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ किया जाता है। नव नाग स्तोत्र - अनन्त वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्। शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।। एतानि नव नामानि नागानां च महात्यनाम। प्रातःकाले पठेन्नित्यं सायं काले विशेषतः।। तस्य विष भयं नास्ति सर्वत्र विजयीभवेत्।। राहु की दशा में विशेष कष्ट आ रहे हांे तो जीवित सर्प दान करें या जंगल में छोड़ दें।
 अन्य साधारण उपाय 1. शनिवार के दिन अपने वजन के बराबर कच्चा कोयला जल प्रवाह करें।
 2. राहु की शांति के लिए शनिवार को एक सूखा नारियल लेकर उस पर काले रंग से पांच स्वास्तिक बनाएं और भैरों मंदिर में चढ़ाएं।
 3. बच्चे का राहु दोष निवारण करना हो तो 21 बार घड़ी के घुमने के दिशा में सिर से नारियल घूमाकर भैरो मंदिर में चढ़ायें। राहु का बीज मंत्र: ‘‘ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः। काली हकीक माला से संध्या के बाद एक तेल का दीपक जलाकर तीन माला या कम से कम एक माला अवश्य जाप करें। - बहते जल में सीसा प्रवाहित करें। - रांगा के 108 सिक्के लें। प्रतिदिन एक सिक्का गंदे नाले में फेंके। - सात अनाज मिलाकर दान करें या पक्षियों को विशेषकर कबूतरों को डालें।
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।। हर शमस्या की समाधान है ।।
 पं:अभिषेक शास्त्री
+918788381356

Comments

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